मुकदमों से अंबार से छुटकारे का एक सरल उपाय

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2022-11-26 01:21:20


मुकदमों से अंबार से छुटकारे का एक सरल उपाय

मुकदमों से अंबार से छुटकारे का एक सरल उपाय
एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने एक बात एक दम सही कही है कि पांच करोड़ लोग मुकदमों के अंबार से परेशान हैं. एक अनुमान के अनुसार एक परिवार में चार लोग हों तो भी बीस करोड़ लोग इन मुकदमों के कारण तनाव झेल रहे हैं. यह संख्या ज्यादा भी हो सकती है क्योंकि धार्मिक व अन्य कारणों के चलते ऐसे भी परिवार हिंदुस्तान में बड़ी संख्या  में हैं जिनमे सदस्यों की संख्या दस से तीस तक होती है.
मुकदमों के निपटारे की गति ऐसी है कि पांच दस साल से लेकर पच्चीस तीस साल के बीच किसी मुकदमें का निपटारा अंतिम रूप से हो ऐसी स्थिति आती  है. इसका कारण तारीख पर तारीख, स्थगन पर स्थगन और अपील पर अपील के कारण बनती है.
भारत और उसके समान या ज्यादा विकास वाले देशों में मुकदमें एक से पांच साल में निपट जाते हैं तो भारत में इनके निपटने में देरी का क्या कारण हो सकता है?
इसके समाधान में न अदालतों की रूचि है न राजनीतिक पार्टियों की. बस देरी का गाना गाते हैं और एक दूसरे पर दोषारोपण कर चुप रह जाते हैं.
समस्या के समाधान के लिये दबाव बन सके इसका एक उपाय उपध्याय ने सुझाया है कि मुकदमें में पेशियों पर जाने वाले पांच करोड़ लोग ही फेसबुक पर अकाउंट बनाकर अपनी व्यथा लोगों को बताए. कम से कम जब वे पेशी पर जाते हैं तो क्या स्थिति बनती है, क्या परेशानियां होती हैं, इसका ब्यौरा वे हर बार डालें तो आसानी से दबाव बन सकेगा. तब सरकार और अदालतें इस समस्या के समाधान की दिक्षा में ठोस कदम उठाएंगे और पांच साल में ही कोई न कोई रास्ता निकल जाएगा. फेस बुक के साथ बाकी सोशल मीडिया का सहारा लिया जा सकता है.
जब सोशल मीडिया से सरकारें बदल जाती है, चुनाव के परिणाम बदल जाते हैं तो मुकदमों के अंबार का समाधान क्यों नहीं निकल सकता. बस पहल करने की जरूरत है. 

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