चीन के हाथ लगा ताइवान के खिलाफ प्रभावी हथियार

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2022-08-04 04:42:11


चीन के हाथ लगा ताइवान के खिलाफ प्रभावी हथियार

4 अगस्त. अमेरिकन हाउस आफ रिप्रिजेंटेटिव की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने ताइवान की यात्रा कर अपना राजनीतिक हित साध लिया और अमेरिका की ताकत का प्रमाण भी दुनिया को दे दिया. अमेरिकन व्यापारिक हित भी साध लिये पर ताइवान को भारी मुसीबत में फंसा दिया.
चीन विस्तारवादी है. ताकतवर है और विश्व शक्ति भी. अमेरिका वन चाइना नीति के नाम पर चीन के सामने आत्मसमर्पण का पाप कर चुका है. क्योंकि व्यापारी अमेरिका को लाभ के आगे सब हित गौण लगते हैं. पर विश्व राजनीति में अपना कूटनीति का सिक्का चलाने के लिये और चीन को परेशान करने के लिये ताइवान राग भी अलापता रहता है. पहले अफगानिस्तान और फिर यूक्रेन में उसने जो पलायनवादी नीति अपनाई उससे उसकी विश्व शक्ति के तमगे की हवा निकाल दी थी. उस गुब्बारे में हवा भरने का काम उसने नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के माध्यम से सफलतापूर्वक किया है.
पर ताइवान का क्या होगा? चीन कहता रहा है कि ताइवान उसका अभिन्न अंग है और एक न एक दिन वहां चीन को अपने में शामिल कर लेगा. इस राग को जिंदा रखने के लिये वह वायुसीमा का उल्लंघन कर ताइवान को धमकाता भी रहता है. एक चीन सिद्धांत को भारत और अमेरिका दोनों मान्यता देते हैं. भारत ने तो चीन के पक्ष में आत्मघाती कृत्य को भी अंजाम दिया है. जब संयुक्त चीन था और उसे संयुक्त राष्ट्रसंघ में परमानेंट सदस्यता प्राप्त थी. पर उसके चीन और ताइवान के बंटते ही इस सदस्यता का को भारत को देने की बात चली थी तो भारत चीनी भाई भाई के मोहपाश में फंसे पंडित नेहरू की  पहल पर उसे चीन को दे दिया गया. जिसका नतीजा हम आज भी भुगत रहे हैं.
वापस मूल बात पर आयें कि नैंसी की ताइवान यात्रा ने क्या समस्या पैदा की है. यह बात निर्विवाद है कि चीन के पास विशाल सैना है. उसका अस्त्र शस्त्र तका सैन्य सामग्री का उत्पादन भी भारी भरकम है. इसे वह दुनिया के कई देशों को बैचता भी है. मदद के तौर पर दान करता है और सैन्य अभ्यासों में प्रयोग कर निपटाता रहता है ताकि पुराने साजो सामान का कबाड़ एकत्रित न हो जाए. सैन्य शक्ति में सक्रियता बनी रहे इसलिये उसके अपने सीमावर्ती देशों से संबंध तनाव पूर्ण ही बने रहते हैं. उसकी सेनाओं का बड़ा हिस्सा यहां पड़ोसी देशों की सीमा पर तैनात रहता है. वैसे भी चीन के जितने पड़ोसी देश नहीं है उनसे ज्यादा देशों के साथ तो उसके सीमा व सैन्य विवाद हैं.
इन विवादों से चीन पर ज्यादा अतिरिक्त वित्तीय बौझ नहीं पड़ता है उससे कहीं ज्यादा भारी बौझ बेवहज उसके पड़ोसी देशों को झेलना पड़ता है. सेना का खर्च सीमा पर तनाव के चलते तैनाती के कारण बढ़ जाता है.
भारत उसका भुक्त भोगी है. 1962 की पराजय के  पहले तो चीन चुपचाप भारत की धरती हड़पता ही रहता था पर 1962 में तो उसने हजारों एकड़ भूभाग कब्जे में ले लिया. उसके बाद भी भारत सरकार पूरी तरह से नहीं जागी. उसने सैना पर थोड़ा सा ज्यादा ध्यान  तो दिया. पर चीन की सीमा पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. चीन सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर तेजी से तैयार करता रहा और भारत वित्तीय संकट के नाम पर मंथर गति से चला.
इसका लाभ यह निकला  कि मोदी सरकार के आने के पहले तक चीन कई हजार मीटर भारत की जमीन पर आ जाता था और भारत सरकार वार्तालाप के नाम पर  चिरौरी कर हाथ जोड़कर वापसी की प्रार्थना करती रहती थी. काफी परेशान कर चीन हजारों मीटर जमीन में से कुछ सौ मीटर पीछे हट जाता और वहां से हटने से इंकार  कर देता. भारत सरकार भी शांत हो जाती और वास्तविक नियंत्रण रेखा बदल  जाती. मोदी सरकार आने के ठीक पहले भी यही हुआ था. पर मोदी सरकार ने मोर्चा संभाला और इन्फ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने में तेजी ला दी.
नाराज चीन ने पहले आंखें बताई और फिर बफर जोन था उसकी कुछ जमीन पर कब्जा कर लिया. जबकि पहले वहां न भारत की सेना थी और न चीन की. साथ ही कुछ क्षेत्रों में भारत की गश्त रोक दी. इस प्रकार से उसने नरेन्द्र मोदी का नाम खराब करने के लिये विपक्ष को एक हथियार दे दिया. इसका विपक्ष से ज्यादा देश में ही बैठे गद्दारों ने ज्यादा उपयोग किया है.
विषयांतर कुछ ज्यादा भले ही हो गया हो पर इससे ताइवान के सामने पैदा हुए संकट को समझने में मदद मिलेगी. नैंसी पेलोसी की एशिया की यात्रा का जो अधिकृत कार्यक्रम में ताइवान का नाम नहीं था. नैंसी ताइवान जाने की जिद पर अड़ी थी. वह अमेरिका की तीसरे नंबर की राजनीतिक प्रशासनिक हैसियत वाल शख्शियत हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बाद अमेरिकी संसद की इस अध्यक्षा का नाम ही आता है. किसी भी संकट के चलते अगर अमेरिका में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति देश को नेतृत्व नहीं दे पा रहे हों  तो यह दायित्व वहां की संसद की अध्यक्ष पर आ जाता है जिस पर आजकल नैंसी पेलोसी विराजमान हैं.
नैंसी पेलोसी जब से अमेरिकाी कांग्रेस की सदस्य चुनी गई तभी से मानवाधिकारों के नाम पर वह चीन विरोधी लोगों के साथ खड़ी हैं. 1991 में वह चुने जाने के साथ ही मानवाधिकारों की रक्षा के नाम पर बीजींग के उस थ्येन ऑन मॉन चौक पर गई थी और मानवाधिकरों के पक्ष में बैनर फहराया था जहां कभी चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने लोकतंत्र समर्थक तीन हजार से ज्यादा चीनी युवाओं और छात्रों को टैंकों से रौंदने का पैशाचिक कृत्य को अंजाम दिया था.
ऐसी नैंसी की ताइवान जाने की जिद स्वाभाविक थी जिसे अमेरिका रोक भी नहीं सकता था. सारी धमकियों के बीच भी अमेरिका सुरक्षा के बीच नैंसी ताइवान में उतरी और वहां की राष्ट्रपति से मुलाकात कर वापस आ गईं.
फिर मूल विषय पर लौटें. अब चीन को नया बहाना मिल गया है. नैंसी के ताइवान पहुंचने के पहले ही उसने सीमा पर युद्ध अभ्यास किया था. वायु सीमा का उल्लंघन कर सैन्य विमान ताइवान के आकाश में उड़ाए थे. अग से खेलने के खिलाफ धमकियां दी थी. ताकि अमेरिका और नैंसी इरादे बदल दें.
लैकिन ऐसा नहीं हुआ और नैंसी ताइवान आकर अपना काम पूरा कर लौट गई.
चीन का समुद्र ओर सीमाओं पर शक्ति प्रदर्शन जारी है. वह और ज्यादा उग्र हो चला है. दुनिया भेड़िया आया भेड़िया आया कहती ही रहे और पता नहीं कब भेड़िया आक्रमण कर दे. ताइवान को दबोच ले और मीलों दूर बैठा अमेरिका देखता ही रह जाए.
यह है वह केन्द्र बिंदु जिसकी ओर में ध्यान खींचना चाहता हूं. अब ताइवान को सीमा की सुरक्षा पर ज्यादा खर्च बढ़ाना होगा. चीन उस पर प्रतिबंधों की बाढ़ सी ला देगा. कम्प्यूटर चिप में नेचुरल सैंड का उपयोग होता है जिसका ताइवान चीन से आयात करता है. उसे चीन ने रोक दिया है. इससे दुनिया के सबसे बड़े चिप निर्माता ताइवान की आर्थिक ताकत पर भारी बुरा असर पड़ेगा.
वहीं चीनी वायरस के कारण महामारी झेल रही दुनिया में जो आर्थिक मंदी देखी जा रही है उसका असर अमेरिका के युद्ध सामग्री, हथियार और अस्त्र शस्त्र बनाने वाले कारखानों पर बुरा असर पड़ा है. अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य सामग्री निर्यातक है. उसकी मंदी की चेन भी ताइवान के नये संकट से टूटेगी. अकेला ताइवान ही नहीं दुनिया के बाकी देश भी अमेरिका से शस्त्र खरीद बढ़ा देंगें. यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन की बर्बादी हो रही है पर सारा लाभ तो अमेरिका दुनियाभर में आई शस्.त्र खरीद की तेेजी के माध्यम से लाभ उठा रहा है. अब ताइवान का संकट अमेरिकी शस्त्र निर्माताओं के लिेय टॉनिक का काम करेगा.
दुनिया विश्व युद्ध के खतरे से आगाह करने के नाम पर अमेरिकी जाल में फंस रही है. न यूक्रेन के कारण विश्व युद्ध की  चेतावनियां असरकारी नजर आई न ताइवान के नाम पर दी जा रही विश्व युद्ध की चेतावनियां असरकारी होंगी इस बात में कोई दम  है. क्योंकि चीन खुद आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. वह सैन्य अभ्यास तो कर सकता है. सीमा का उल्लंघन भी करता रहेगा पर ताइवान पर कब्जा कर युद्ध  में नहीं फंसेगा. यह पक्का मानिये.

Contact:
Editor
ओमप्रकाश गौड़ (वरिष्ठ पत्रकार)
Mobile: +91 9926453700
Whatsapp: +91 7999619895
Email:gaur.omprakash@gmail.com
प्रकाशन
Latest Videos
जम्मू कश्मीर में भाजपा की वापसी

बातचीत अभी बाकी है कांग्रेस और प्रशांत किशोर की, अभी इंटरवल है, फिल्म अभी बाकी है.

Search
Recent News
Leave a Comment: