कैसे सुलझेगी दिल्ली और देश की अतिक्रमण की समस्या 28 अप्रैल.

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2022-04-28 03:16:06


कैसे सुलझेगी दिल्ली और देश की अतिक्रमण की समस्या  28 अप्रैल.

दिल्ली में अतिक्रमण हटाना एक राष्ट्रीय समस्या बन गया  है. यह एक साम्प्रदायिक समस्या भी है क्योंकि आरोप है कि केवल एक सम्प्रदाय या कहें तो मुसलमानों के अतिक्रमण ही हटाए जा रहे हैं. जब कहा जाता है कि धार्मिक पक्षपात नहीं है तो कहते हैं सूची देख लो, दस लोगों में से आधे से ज्यादा मुसलमान हैं. अभी सबसे ज्यादा गरम सवाल दिल्ली का है तो आप सरकार अपने ढ़ंग से वोटबैंक बनाने के लिये रोहिंग्या और बंगलादेशी घुसपैठियों को संरक्षण दिया. उनके पास सारे कागजात हैं. आधार कार्ड से लेकर सब कुछ. ये जाली दस्तावेजों के आधार पर बने हों या बिना कागजात के रिश्वत की दम पर. पर हैं तो. इसलिये मामला सुप्रीम कोर्ट में है और एक एक पेशी पर खड़े होने के लिये बीस बीस लाख रूपया  लेने वाले आला वकील इनके पक्ष में खड़े हैं. देश में कई जगह अतिक्रमण हटाए गये या गैर कानूनी कब्जे हटाए गये तो उनके पक्ष में मुसलमानों की एक संस्था मैदान में है.
इसलिये इस समस्या को समझना है तो मूल जड़ से समझना होगा. फिर भी शायद पूरी तरह से समझ में नहीं आए क्योंकि समझना इस बात पर निर्भर करता है कि आप उसे किस नजरिये से देख रहे हैं. फिर भी कोशिश करने में क्या बुराई है.
अतिक्रमण एक कानूनी समस्या है. लेकिन अनदेखी और भ्रष्टाचार ने मिलकर इसे मानवता से जुड़ी जटिल समस्या बना दिया. जब बात मानवता से जुड़ी और प्राकृतिक न्याय के अधीन आ गई तो उसके हिसाब से कानून बने. उसमें भी उन कानूनों की अनदेखी और भ्रष्टाचार के चलते और जटिलताएं जुड़ गई. जहां कानून की बात आई तो न्यायिक व्यवस्था जुड़ गई. भारत उन देशों में शामिल है जहां निचली अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक में कब न्याय मिलेगा यह भगवान के अलावा कोई नहीं बता सकता और भगवान से कोई पूछ नहीं सकता. अदालतों में तो बस तारीख पर तारीख का बदनाम सिलसिला चलता है जिसके चलते उस भगवान की याद आ जाती है जिसे किसी ने देखा  तक नहीं है.
देश का कानून कहता है कि सरकारी जमीन पर कोई कब्जा करे तो उसे  यथाशीध्र हटाया जाए. यथाशीध्र इसलिये कि भले ही कब्जा करने वालों ने बिना कानून से पूछे कब्जा किया हो पर जब हटाने की बात आएगी तो कानून है उसका पालन करना ही पड़ेगा क्योंकि देश में कानून का शासन है.
इस हटाने के कानून का आधार ही मानवीयता है. कोई झुग्गी हो या गुमटी  अथवा दुकान उससे किसी को छत मिलती है तो किसी को कमाने की सुविधा जो जीवन के लिये जरूरी मूल अधिकारों के दायरे में आती है.
पहला कानून तो यही है कि अतिक्रमण हटाने के पहले सूचना देनी होगी. पांच से पन्द्रह दिन का नोटिस देना होगा. कानून के व्याख्याकार कह सकते हैं कि तत्काल हुए अतिक्रमण को हटाने पर ऐसा करना जरूरी नहीं है या कोई अस्थाई किस्म का कब्जा है तो उसे बिना सूचना के हटाया जा सकता है. पर ऐसा होता नहीं है क्योंकि हिंदुस्तान में भ्रष्टाचार सरकारी व्यवस्था में खून की तरह बहता है. इसलिये अतिक्रमण कभी भी तत्काल नहीं हटता है. अपवादों की बात और है.
शहरों में यह दृश्य आम है कि नगरपालिका या नगर निगम का अमला आता है और फुटपाथ पर अतिक्रमण कर सामान बेचते लोगों का सामान जब्त कर लेता है या स्थाई दुकानदारों का जो सामान फुटपाथ पर फैला है उसे जब्त कर लेता है. यहां भी भ्रष्टाचार काम करता है किसी का जब्त करते हैं तो किसी का छोड़ देते हैं कि चलो समेट लो. जैसे ही अतिक्रमण विरोधी दस्ता कार्यवाही करते हुए आगे बढ़ता है वैसे ही पीछे पीछे अतिक्रमणकारी फिर नजर आने लगते हैं और उनकी दुकाने सजने लगती हैं.
कानून भले ही इन अतिक्रमणकारियों के खिलाफ हो पर आम लोगों की सहानुभूति इनके साथ रहती है क्योंकि ये गरीब होते हैं और इस प्रकार से काम कर दो वक्त की रोटी ही जुटा पाते हैं लखपति नहीं बन जाते. फिर इसमें भ्रष्टाचार की भूमिका भी रहती है. जो हटाने के लिये जिम्मेदार होते हैं वही नहीं हटाने के लिये पैसा वसूलते हैं. वे कब हटाने आएंगे इसकी सूचना अतिक्रमणकारियों को पहले दे देते हैं ताकि उनका कम से कम नुकसान हो. कई बार तो वे ही लोगों को आमंत्रित करते हैं कि आओ हमारी जेब गरम करों और अतिक्रमण कर काम धंधा चलाओ या झुग्गी बनाओ. इस प्रकार से अतिक्रमण बढते ही जाते हैं.
इस प्रकार लम्बे समय का अतिक्रमण बन जाता है जिस पर हटाने की पूर्व सूचना का कानून धीरे धीरे लागू होने लगता है. जब जब उनका अतिक्रमण हटता है, उन पर अतिक्रमण करने की सजा के  तौर पर जुर्माना लगता है, जो सामान जब्त किया जाता है उसकी वापसी के लिये भी जुर्माना लगाया जाता है. जुर्माने की रसीदों पर रसीदें इस बात का प्रमाण बन जाती है कि यहां वे अतिक्रमण करके कानून तोड़कर ही सही पर लंबे समय से काम धंधा  कर रहे हैं.
कल्याणकारी सरकार और उसके कानून कहते हैं कि उनके लिये वैकल्पिक व्यवस्था की जाए. वैकल्पिक व्यवस्था में इन बार बार कानून तोड़ने वालों का हक पहले बनता है और जुर्माने की रसीदें इसमें प्रमाण का काम करती हैं.
कमोबेश यही कहानी झुग्गियों के बारे में लागू होती है. कई कई नेताओं और अफसरों के नाम से भी अतिक्रमण चलते रहते हैं. उनकी अतिक्रमण की दुकान या झुग्गी पर वे किराया कमाते हैं.
जब अतिक्रमण बार बार हटाने बाद एक तरह से स्थाई हो जाते हैं तो उन्हें हटाने के नोटिस के बाद कई व्यक्तिगत तौर पर तो कई सामूहिक तौर पर अदालत की शरण में चले जाते हैं. वहां  से स्थगन मिल जाता है. स्थगन की कोई समय सीमा तो होती नहीं है. भ्रष्टाचार की भेंटपूजा से स्थगन चलता रहता है या अदालत में मामला चलता रहता है और तारीख पर तारीख मिलती रहती है.
अब देखना यही है कि अतिक्रमण हटाने की मुहिम चल पाती है या नहीं. चलती है तो कैसे चलेगी. सुप्रीम कोर्ट इसका कैसा समाधान देगा. वह व्यवहारिक होगा या आदर्शवादी जिसे आम भाषा में आसमानी सुल्तानी कहा जाता है. 

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